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Wednesday, June 1, 2011

Gautam Kale - One More Eklavya

एक और एकलव्य 
 गौतम काले
लेखक - हनफी सर आई पी एस वाले भाईजान 

(विशेष : गौतम को विदुषी कल्पना ज़ोकरकर जी से मिलने का अवसर मिला और गौतम का गाना सुनके उन्होंने गौतम को विशेष मार्गदर्शन दिया )
एकलव्य की कहानी सभी जानते हैं, उसकी योग्यता से सभी परिचित हैं - उसकी गुरु सेवा भी अनजानी नहीं हैं , और गुरु द्वारा बिना शिक्षा दिए उससे गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांगना सरविदित हैं - "एकलव्य " हर युग में जनम लेते हैं , परन्तु योग्य होने के बावजूद गुरु की अपेक्षा , नाराजी का शिकार होकर गूम हो जाते हैं -


कलयुग के एक "एकलव्य " की कहानी भी इसी प्रकार की हैं - यह कहानी हैं इंदौर के गौतम काले की, जिसने अपनी आँखे संगीत के वातावरण में खोली, यहाँ तक की उसने गर्भावस्था में ही अपनी माता के जरिये अच्छे अच्छे गायकों को सुना - ढाई साल की उम्र में उसने अपना पहला गीत एक स्टेज पर गाया जो, उसकी संगीत के प्रति रुझान का पहला संकेत था - संगीत के प्रति लगन व सीखने की उत्कंठा तभी से जाग्रत हो गई थी - वर्ष १९८८ से श्रीमती कुंडा जोशी से शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा लेना आरंभ की और कुछ ही समय में स्वरों की समझ उसने आत्मसात की - स्कूल में, स्थानीय प्रतियोगिताएं में भाग लेना आरंभ किया और कई पारितोषिक अर्जित किये - रफ्ता रफ्ता उम्र बढती गई स्वरों में ठराव आने लगा तब उसे मार्ग दर्शक के रूप में स्वर्गीय पंडित वी जी रिंगे तंरंग ग्वालियर घराने के सुप्रसिद्ध गायक का सानिध्य मिला - परन्तु मन ही मन वह महसूस करता रहा की जो मुझे गाना हैं , वह यह नहीं हैं - उसे इसका कोई ज्ञान भी नहीं था की वह कौन सा संगीत हैं, जिसे वह आत्मसात करे - इसी उधेड़ बुन में समय बिताता गया और जो शिक्षा उसे मिल रही थी उसे ग्रहण करता रहा –


इंदौर में "शानिमंदिर " एक प्राचीन स्थान हैं - जहा प्रतिवर्ष शनिवार जयंती सप्ताह अत्यंत उत्साह के साथ मनाया जाता हैं - जिसमे देश के जाने माने गायक वादक अपनी हाजरी देते हैं - एक वर्ष आदरणीय पंडित जसराज जी का गायन कार्यक्रम निश्चित हुआ , मंदिर के सामने अर्थात शनि गली में स्टेज बनाया गया और रात्रि पंडित जी का गायन कार्यक्रम आरंभ हुआ - गौतम काले अपने माता श्रीमती कीर्ति काले पिता श्री डॉ किशोर काले के साथ उस कार्यक्रम में गए - पंडित जी २ - ३ घंटे तक गाये सभी श्रोता मंत्र मुग्ध हो झूम उठे - इधर गौतम इतने आत्म विभोर हो रहे थे की उनको सुध न रही वा पैर फिसल वह ओतले से गिर परे, बिना अपना दर्द बताये पुन: पंडित जी के गायन का रस विभोर हो गये - घर जाकर गौतम ने अपने पिता से कहा की मुझे पंडित जी जैसा गाना सीखना हैं - जैसे उन्हें वह संगीत मिल गया , जिसकी वह खोज में थे - १२ - १३ साल की उम्र और गौतम ने जिद पाकर ली की मैं पंडित जी से गाना सीखूंगा - कुछ वर्षो में वह समय भी आया की पंडित जसराज जी कार्यक्रम (पारिवारिक) में इंदौर आये तथा श्री सुमेर सिंह जी के यहाँ रुके थे - पंडित जी का गुजरात के सानंद राज परिवार घराने से सम्बन्ध था, तथा वहा की राजकुमारी श्री सुमेर सिंह जी की पत्नी हैं अतः वे इंदौर में उन्ही के घर अधिकतर रुकते हैं - प्यार से वे राजकुमारी को "बुलबुल बाबा " कहते हैं - गौतम को जैसे ही ज्ञात हुआ उसने पंडितजी से मिलने की जिद की ! चूँकि एक अच्छी जिद थी अत:गौतम के पिता ने प्रयास कर पंडितजी से मिलने का समय लिया और करीब ११ बजे श्री सुमेर सिंह जी साहब के बंगले पहुच गये - जबकि मिलने का समय १२ बजे का था - गौतम की उत्सुकता बढती ही जा रही थी - जैसे ही १२ बजे गौतम श्री सिंह के घर की और भाग कर जाने लगा - ११ से १२ बजे तक का समय पिता पुत्र ने बंगले के बाहर एक पुलिया पर बैठकर बिताया - दरवाजे पर पहुंचकर घंटी बजाई , नौकर आया , गौतम बोला पंडित जी ने मिलने का समय दिया हैं , तब नौकर ने कहा वह विश्राम कर रहे हैं तब तक आप बहार रुकिए - दिल मसोस केर पिता पुत्र पुन: उसी पुलिया पर जाकर बैठ गए- काफी इंतजार के बाद उन्हें उनसे मिलने की अनुमति मिली - गौतम की व्याकुलता बढती जा रही थी - करीब १० मिनट बाद पंडितजी बहार बैठक मैं आए उनकी सतेज कान्ति, गले से रुद्राक्ष माला ,ढीला कुरता धोती पहने एक महापुरुष की भांति दिखाई दिए –


गौतम ने तुरंत उठकर उनके चरण छु लिए उन्होंने कहा "जय हो " - तत्पश्चात संगीत की चर्चा चली, गौतम ने कहा की मैं आपसे गाना सीखना चाहता हूँ , तब पंडितजी बोले कुछ सुनाओ , पर तुम्हे तबला व तानपुरे के बिना ही सुनना होगा - गौतम ने एक राग में बंदिश मय आलाप, तानो के सुनाई - उस वक्त पंडितजी ने आंखे बंद कर आत्मीयता से उसे सुना तथा समाप्त होने पर आंखे खोली - और बोले अभी तुम छोटे हो और सीखो फिर देखेंगे - पंडितजी को प्रणाम कर गौतम अपने पिता के साथ वापस घर आ गया - परन्तु एक कसक का आभास उसके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था - जब उससे पूछा तो उसने बताया की कोई बात नहीं पंडितजी भले ही अभी न सिखाये मुझे तो उनके जैसा ही गाना हैं - दुसरे दिन वह पंडित जसराज जी की एक छोटी सी तस्वीर लाया और कहा की पापाजी मुझे इसकी एक बड़ी कापी करा दो -उसे मै अपने कक्ष में रखूँगा और उसके सामने बैठ कर रियाज करूँगा - उसे पंडित जी का काफी बार चित्र लाकर दिया गया - चित्र को दीवार पर टिकाया उसके आगे राधा कृष्ण की मूर्ति राखी पास में माँ सरस्वती की प्रतिमा विराजित की और तानपुरा लेकर रियाज आरंभ कर दी -


पंडितजी का गायकी को करीब से समझने के लिए उसने उनके गाये हुए रगों का रिकॉर्ड कैसेट्स का संकलन आरंभ किया जहा भी वे उपलब्ध होती वह खरीद लाता था या कोई उसका दर्द उसकी उत्सुकता देख उसे यु ही भेंट कर देता था - पंडितजी की गायकी सिखने का एक जूनून गौतम के सर पर स्वर हो गया था - प्रतिदिन अपने अध्यन के अलावा वह कैसेट्स सुनता और वैसा गाने का प्रयास करता - बुनियादी स्वरों की शिक्षा होने से उसे गायकी समझने में कम परेशानी हुई - कोई मार्ग दर्शक नहीं मात्र पंडितजी की आवाज तथा उनके भव्य चित्र से ही उसे प्रेरणा मिली - सतत रियाज करते करते ५ - ६ साल गुजरे वह युवा हो गया था, स्वरों में ठराव आने लगा - वर्ष २००३ में वरः नमहाराष्ट्रमंडल नई दिल्ली द्वारा सागर मध्य प्रदेश में एक शास्त्रीय संगीत गायन प्रतियोगिता आयोजित की जिसमे भाग लेने के लिए पहले स्वय की रेकॉर्डेड कैसेट्स भेजना होती है , गौतम ने अपनी कैसेट्स भेजी और उस अधर पर प्रतियोगिता में भाग लेने की स्वीकृति मंडल द्वारा मिल गई


वह सागर प्रतियोगीता हेतु पंहुचा - जहाँ प्रतियोगियों को ठेराया गया था - वहां मंदिर था - गौतम ने अपना अभ्यास वही बैठ कर किया परन्तु उसकी आवाज बैठ गई - वह गाने योग्य नहीं रही - वह अत्यंत निराश होकर मंदिर में इश्वर से प्रार्थना करने लगा - परन्तु कोई लाभ नहीं कुछ दवाइयां भी ली - दुसरे दिन प्रतियोगिता थी - वह निराश था - उसने घर पर अपनी माता को फ़ोन कर वस्तुस्थिति बताई और कहा वह भाग नहीं ले सकेगा तथा वापस घर आ रहा हैं - उसकी माँ ने कहा वापस नहीं आना हैं जैसी भी आवाज़ हो गाकर ही आना हैं - दुसरे दिन प्रतियोगिता आरंभ हुई एक के बाद एक प्रतियोगी मंच पर आकर अपनी प्रस्तुति दे रहे थे - तभी गौतम के नाम की पुकार मंच से हुई - अपने इष्टदेव श्री गजानन महाराज तथा आराध्य गुरु का स्मरण कर गौतम अपने तानपुरे सहित मंच पर पंहुचा, पूर्ण आत्म विश्वास के साथ अपना गायन आरंभ किया - इसे चमत्कार , इश्वर की कृपा मन जा सकता हैं , गौतम की आवाज़ ठीक हो गया था और पूर्ण निष्ठां के साथ श्रोताओं तथा निर्णयको के समक्ष राग शुद्धसारंग में सुंदर प्रस्तुति दी - इस पर भी उसे संतोष नहीं था - अपनी प्रस्तुति पश्चात् उसने आयोजको से विदा लेने का विचार कर उने पास गया तभी उन्होंने गौतम की सुंदर प्रस्तुति पर बधाई देते हुए आग्रह किया की वह परिणाम सुनकर जाये - अन्य प्रतियोगियों की प्रस्तुति के बाद घोषणा हुई , गौतम आश्चर्यचकित हो गया जब यह घोषित किया गया की गौतम को प्रथम पुरुस्कार प्राप्त हुआ हैं - दुसरे स्थान पुर कु. क्षितिज तारे रहा जो पंडित रतन मोहन शर्मा ( पंडित जसराज जी के भांजे ) से तालीम ले रहे थे - दोनों ने मेवाती घराने की गायिकी प्रस्तुत की थी - क्षितिज तारे ने गौतम से पूछा तुम किससे गायन सीखते हो - पंडित जी के घराने की गायकी को तो तुमने आत्मसात कर लिया हैं , मै तो पंडित राम रतन मोहन जी का शिष्य हूँ - तब गौतम ने कहा की मैं परम पूजनीय पंडित जसराज जी का " एकलव्य शिष्य " हूँ - उनकी तस्वीर के सामने बैठकर सीखता हूँ -और मेरी इच्छा हैं की में उनसे विधिवत संगीत शिक्षा ग्रहण करू - प्रतियोगिता में उपस्थित एक श्रोता ने गौतम से कहा की मैं वर्षो से संगीत सभाओं में जाता हूँ , मैंने गायकों को सुना हैं पर आज तुम्हारे गायन ने पंडित जसराज जी की याद दिला दी तुम्हे बधाई व आशीष हे - उपस्थित निर्णायकों में से श्रीमती शोभा चौधरी ने कहा की गौतम तुमने आज तक की सर्वोतम प्रस्तुति दी हैं - पुरुस्कार ग्रहण कर गौतम वापस इंदौर पंहुचा और पुन: अपनी संगीत साधना में लग गया –
गौतम के घर पर उसका एक अलग संगीत कक्ष हैं गयानोप्योगी समस्त साजो सामान के अतिरिक्त पंडित जसराज जी की बहुत बरी तस्वीर राधा कृष्ण की तथा माता सरस्वती की मूर्ति स्थापित हैं - वह सभी दरवाजे बंद कर पंडित जी की कैसेट , सी डी सुनता और उनकी तस्वीर के सामने गाने का प्रयास करता - यह प्रक्रिया ५ - ६ सालों तक सतत जरी रही - परन्तु उसके ह्रदय में एक टीस सदा रहती की काश वह पंडितजी के साये में सीख पाता –


इस प्रकार संगीत साधना में समय बिताता रहा - एक समय की बात हैं इंदौर के शासकीय संगीत महाविद्यालय में पंडित रतन मोहन शर्मा के गायन का कार्यक्रम आयोजित किया गया - गौतम कार्यक्रम के पूर्व उनसे मिले - उन्हें गौतम को पहचानने में कतई समय न लगा - क्योंकि उनके शिष्य क्षितिज ने सागर की प्रतियोगिता के बारे में उन्हें बता रखा था - पंडित रतन मोहन जी के गौतम ने चरण स्पर्श किये और उन्होंने आशीष दे अपने साथ तानपुरे पर साथ देने हेतु कहा जिसे अहो भाग्य मानकर गौतम तुरंत तैयार हो गए - कार्यक्रम के पश्चात् गौतम और उनके माता पिता पंडित शर्मा से मिले व उनसे कहा की क्या आप गौतोम को सिखायेगे तब पंडित रतन मोहन जी ने कहा आज से ही मैंने गौतम को शिष्य स्वीकार किया इसे आप मुंबई भिजवा दे - गौतम अपने अध्यन के साथ साथ माह में जो समय मिलता पंडित शराजी के यहाँ मुंबई जाता और तालीम लेता - पारिवारिक अमास्या. कॉलेज की पढाई , भविष्य के चिंता के चलते गौतम का मुंबई जाना बूंद हुआ - परन्तु गौतम ने अपनी एकलव्य तपस्या को यथावत जरी रखा - समय बीतता गया, गौतम ने एम ए सोसिअल वर्क उत्तीर्ण किया - जीवन यापन के लिए कुछ तो करना होगा अतः नौकरी करने का विचार इस लिए छोड़ा की उसे गायन को प्राथमिकता देना हैं, इसलिए उसने अपना स्वय का वयवसाय स्प्लेश कार्ड एक्सप्रेस नाम से प्लास्टिक परिचय पत्र बनाने का कार्य आरंभ किया और शेष समय संगीत साधना हेतु समर्पित करना आरंभ रखा -


गौतम के मामा श्री शोक कुलकर्णी पेशे से इंजिनियर और एक्सेकुतिव इंजिनियर के पद से सेवा निवृत संगीत के शौक़ीन अकोला में निवास करते हैं - अकोला में स्वर्गंध संस्था के कार्यकारिणी मंडल में विशिष्ठ पद पर रह संगीत कार्यक्रम आयोजित करने हेतु कृत संकल्प हैं - उनकी काफी अरसे से इच्छा थी की पंडित जसराज जी का गायन अकोला मैं आयोजित हो - उनके प्रयास करने के पश्चात वह समय आया जब पंडितजी की स्वीकृति प्राप्त हुई - बारे पैमाने पर तैयारियां आरंभ हुई - पंडितजी के कार्यक्रम की सुचना उन्होंने गौतम को दी एवं कहा की पंडित जी तुम्हारे श्रद्धा स्थान हैं अतः तुम उनके कार्य क्रम में अवश्य आमंत्रित हो - गौतम अत्यंत प्रस्सन थे , मन में अपने परम पूजनीय गुरूजी को करीब से देखने वा सुनने की आशा उसे फिर आतुर कर रही थी - सहने सहने दिन बीते तथा वह दिन आया जिस दिन पंडित जी का गायन कार्यक्रम होना था - गुअतम एक दिन पूर्व ही अकोला पहुच गया था –


पंडित जी आए तथा अकोला की की एक प्रसिद्ध होटल में रुके - गुतम तथा उसके मामाजी ने कई प्रयास किये की पंडित जी से मुलाकात हो जावे परन्तु संभव न हो सका -
अकोला में पंडित जी के कार्यक्रम हेतु भव्य मंच तैयार किया गया था पीछे ग्रीन रूम था जहा पंडित जी और उनके संगरकर वध्य यन्त्र मिला रहे थे - गौतम उसके दरवाजे पर जाकर पंडित जसराज जी के दर्शन लेने खरा हो गया - अचानक पंडित जी की निगाह उस पर पारी और उन्होंने पूछा यह कौन खड़ा हैं तभी पंडित रतन मोहन जी ने कहा यह गौतम काले इंदौर से हैं तथा श्री पेठेकर जी पंडित जी के साथ हारमोनियम पर सांगत करते हैं ने बताया की इस बालक को मैंने पुन में सुना हैं यह भी मेवाती घराने को गता हैं - पंडित जी ने यका यक कहा की इसे एक तानपुरा दो और साथ में बैठा लो - गौतम सिहर उठा और सोचा अब क्या करू तभी श्री पेठकर बोले अब कुछ मत सोचो और तानपुरा लेकर मंच पर पहुचो , तुम नहीं दिखे तो पंडित जी नाराज हो जायेंगे - गौतम सभी संगतकारो के साथ मंच पर पहुच गया - पंडितजी का ज्ञान आरंभ हुआ - कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति थी ॐ नह्मोह भगवते वासुदेव गाते गाते पंडित जी ने गौतम को भी साथ गाने के लिए कहा - उसके बाते समय पंडित जी उसकी तरफ देख रहे थे - उनके चेहरे के हव भाव बता रहे थे की उन्हें गौतम का गाना अच्छा लग रहा था - कार्यक्रम समाप्त होने पर पंडित जी ने कहा की कल होटल में मुझसे मिलो - गौतम सुबह उठकर तैयार हुआ और अपने मामा के साथ ११ बजे होटल पहुंचा , कुछ देर इंतिजार करने के पश्चात् पंडितजी ने गौतम को बुलवाया, कुछ चर्चा पश्चात् पंडित जी ने गाने के लिए कहा और पूछा क्या तानपूरा चाहिए गौतम ने हाँ कहा तब वे पंडित रतन जी से बोले रतन बाबु इन्हें तानपूरा दो , तानपूरे के साथ गौतम ने राग बीहाग में दो बंदिशे जो पंडित जी की गई हुई हैं, लट उलझी सुलझा जा बालम तथा देखो मोरी रंग में भिगोई डारी सुनाई , उन्होते ( पंडितजी ने ) ताने सुनाने को कहा , गौतम ने पंडित जी के रिकॉर्ड में जो ताने थी वही सुनाई जैसे वे गौतम को रति हो - गायन समाप्ति पश्चात् पंडित जी ने कहा की बहुत अच्छी आवाज़ हैं , आवाज़ के साथ साथ इश्वर ने उम्हे अच्छी रूह दी हैं , जो समय के साथ उम्हे समझ में आयेगी - पंडित जसराज जी ने पूछा की किससे सीखते हो तब गौतम ने वह चित्र बताया, जो पंडित जी का था ( घर पर जिस चित्र के सामने वह रियाज करता था , उस चित्र का फोटोग्राफ वह अपने साथ ले गए थे ) और कहा मै इनसे सीखता हूँ , तब पंडितजी अत्यंत भावुक होकर बोले ' गौतम बाबू मै इतना बार नहीं हूँ, मुझे इतने बड़े स्थान एर मन बैठाओ ' परन्तु यह एक सत्यता थी - गौतम ने पंडित जी से निवेदन किया की इस चित्र पर अपने आशीष लिख दी तब पंडित जी ने अपने शुभ वाक्य " जै हो " के साथ उस चित्र पर आशीर्वचन लिखे - वे गौतम के गायन से प्रभावित हुए थे - उन्होंने कहा मुझे फ़ोन कर मुंबई आ जाओ मैं तुम्हे सिखाऊंगा - चरणस्पर्श कर अपने परम गुरु पंडित जसराज जी से विदा ली . मन में प्रसन्नता , मन चाह गुरु मिलने से मिली संतुष्ठी के भाव स्मक्स्ह रूप से दिखाई दी रहे थे - उसने अकोला से इंदौर वापस आने पर उप्रयुक्त सभी बाते अपने परिजनों तथा स्नेहीजनो को बताई - सभी को बरी प्रसंता हु, कुछ ने कहा की महाभारत की कथा के 'एकलव्य' को भले ही गुरु नहीं मिला पर तुम कलयुग के भाग्यशाली एकलव्य हो जिसे गुरु ने स्वीकार कर लिया - अब गौतम आए दिन फ़ोन करते , कभी पंडित जी कार्यक्रम में गए हैं, कभी अमेरिका गए हैं अदि अदि - एक दिन गौतम जी की पंडित जसराज जी से बात हुई, उन्हें उसके अकोला में ह मुलाकात का स्मरण कराया तब पंडित जी ने कहा मुंबई आ जाओ - अगले दिन गौतम अपने माता पिता के आशीर्वाद लेकर मुंबई के लिए रावण हुआ -


मुंबई में गौतम अपने मामाजी के पुत्र श्री अमित कुलकर्णी और बुआ श्रीमती नंदा नाइक के यहाँ रुके - मुंबई पहुंचकर पंडित जसराज जी को फ़ोन लायगा तथा उनकी अनुमति प्राप्त कर उनके निवास पहुंचे - वहा पंडित जसराज जी के चरण स्पर्श किये कुछ चर्चा हुई, गौतम को नाश्ता कराया गया, गुरु माँ तथा सुश्री दुर्गा (पुत्री) से परिचय कराया बड़ा सुखद अनुभव रहा - गुरु से संगीत सिखाने पूर्व की औपचारिकताये बारे गई - सर्व प्रथम इश्वर को नमन करे फिर गुरु, गुरु माँ (आई) के चरण स्पर्श करे अपने इष्ट देव तथा माता पिता का स्मरण कर बतावे की मैं अपनी शिक्षा आरंभ कर रहा हूँ - इसके पश्चात् गुरूजी ने सबसे पहला राग भैरव सिखाना आरम्भ किया, कितनी तन्मयता से उन्होंने राग की बारीकियां बताते हुए एक बंदिश मेरे अल्लाह मेहरबान सिखाई - जब कोई गलती हो तो वे एकदम गुस्सा हो जाते, परन्तु जब उनकी मर्जी के स्वर शिष्य प्रस्तुत करता तो वे अत्यंत प्रसन्न हो कहते जै हो "वाह गौतम बाबू " इस प्रकार एक दो दिन तालीम चलती रही - बोजन समय गुरूजी गौतम को अपने परिवार के साथ भोजन भी कराते - गुरूजी अपने शिष्यों से कितना प्यार करते हैं इसका एहसास गौतम को हुआ - जब भी गुरूजी ( सभी शिष्य पंडित जसराज जी को गुरूजी ही कहते हैं ) मुंबई में रहते गौतम फ़ोन से स्वीकृति प्राप्त कर मुंबई पहुँचता रहा - उसे गायन के साथ साथ रेकॉर्डिंग स्टूडियो में जाने का रथ रेकॉर्डिंग समय उनके साथ तानपूरे पर बैठने का सौभाग्य भी मिला - तालीम के अलावा उनसे ज्ञानवर्धक बाते, उनके प्रसंचित स्वव्हाव का भी अनुभव गौतम ने महसूस किया -


एक बार जब गौतम गुरूजी के घर मुंबई पहुचे उस समय गुरूजी का स्वस्थ ठीक नहीं था, वे अपने शयन कक्ष में विश्राम कर रहे थे - उन्होंने गौतम को वही बुलाया व कहा की स्वश ठीक न होने के सम्बन्ध में बताया और कहा आज अपन फिल्म देखेंगे तब बिच्छु फिल्म लगाई गौतम भि फिल्म देखने लगे - गुरूजी बहुत प्रेम से बोले गतम बाबू फिल्म देखने के साथ गुरु की सेवा भि करना चाहिए , गौतम ने तुरंत गुरूजी के पैर दबाना आरंभ किया और पूरी फिल्म देखी - गौतम इसे अपना सौभाग्य मानता हैं की उसे गुरु चरण स्पर्श एवं चरण वंदन का अवसर मिला -
गौतम का विवाह २३-११-०७ को होना निश्चित हुआ तब उसने गुरूजी को पत्रिका भिजवाई तथा शादी में उपस्थित होने का अनुरोध फ़ोन द्वारा किया तथा यह भि बताया की प्रत्यक्ष में आपको निमंत्रण देने गौतम का भाई राहुल मुंबई आयेगा तब गुरूजी ने कहा इसकी आवशयकता नहीं हैं - यदि गुरूजी की वयस्तता नहीं रही तो वह जरूर आएंगे - जो उनकी सादगी तथा मनाता का परिचायक हैं - यधपि वे विवाह समारोह में नहीं आ पाए परन्तु उनके आशीर्वाद अवश्य प्राप्त हुए –


शादी के अगले माह अर्थात दिसम्बर २००८ को गौतम को सत्य साईं समिति इंदौर की और से सुचना मिली की उसे बाबा के समक्ष परशानी निलयम में भजन प्रस्तुत करना हैं, इसलिए उसे वहा जा रहे अन्य युवाओं के साथ जाना हैं - पूर्व में भि समिति के कुछ आयोजनों में गौतम ने अपना गायन प्रस्तुत किया था - प्रशांति निलियम जहा भगवन सत्य साईं बाबा का निवास हैं , उस जगह को स्वर्ग ही कहा जा सकता हैं गौतम को वहा २ - ३ दिन हो गाये परन्तु बाबा के दर्शन तो होते परन्तु उनकी द्रष्टि गौतम पर नहीं पड़ती - गौतम के साथ अनिल मांडके जो उनके पिता के मित्र हैं उन्होंने बताया की बाबा का ध्यान करो मन ही मन उनसे निवेदन करो वे अवश ध्यान देंगे - प्रातः गौतम ने उसके कमरे में लगे बाबा के चित्र के सम्मुख खरे हो बाबा से निवेदन किया वह उन्हें अपना गायन सुनना चाहता हैं और यदि उसे अवसर मिला तो वह उसके बाद का कार्यक्रम अपनी मूंछे साफ कराकर प्रस्तुत करेगा - इसे चमत्कार ही कहा जा सकता हैं की उसी दिन उसे सुचना प्राप्त हुई की उसे बाबा के समक्ष भजन गाना हैं - जिस दिन गौतम को भजन गाना था , उस दिन वैकुण्ठ एकादशी का शुभ दिन था करीब १५ से १७००० भक्त हॉल में उपस्थित थे - सर्वप्रथम मध्यप्रदेश की युवा टोली ने एक अध्यात्मिक नाटक प्रस्तुत किया उसके पश्चात् गौतम का भजन गायन आरंभ हुआ - एक दो तीन लगातार भजन गाये - उस समय बाबा की शुभ द्रष्टि गौतम पर केन्द्रित थी, गौतम की द्रष्ट्री जब बाबा से एक हुई तो उसके पूरे शारीर में कम्पन का आभास हुआ - वह अधिक समय बाबा की और नहीं देख सके - गौतम ने अपनी आंखे मुंड कर ही अपनी प्रस्तुति पूर्ण तन्मयता एवं समर्पित भाव से प्रस्तुत की - इसी दोरान बाबा ने गौतम की और उनके पास आने का इशारा किया, परन्तु आंखे बंद होने के कारन वह बाबा के इस इशारे को नहीं देख सका, उसी समय उसी के पास बैठे शिर अनिल मांडले (बाबा के भक्त ) जो झांझ पर गौतम का साथ दी रहे थे उन्होंने कहा की गौतम बाबा तुम्हे बुला रहे हैं जल्दी जाओ - गौतम तुरन उठे और बाबा के पास गाये - गौतम ने बाबा के श्री चरणों पर अपना मस्तक रख दिया इस अनुभव को गौतम ने बताया की उसे जीवन का एक अध्भुत अनुभव उसे मिला - जब उसका मस्तक बाबा के चरणों पर था उसके पूरे शारीर में कम्पन हो रहा था , जैसे कोई विधुत शारीर में प्रवाहित हो रही हो - करीब १० सेकंड तक उसका मस्तक बाबा के चरणों पर था, आँखों से अविरल अश्रु प्रवाहित हो रहे थे - बाबा ने उसे उठाया उसके अश्रु पूरित नेत्र उसके मन में उठने वाले इस प्रेम के तूफ़ान को स्पष्ट प्रगट कर रहे थे - गौतम उठा और बाबा के समक्ष अपने हाथ जोड़ कर हतप्रद सा वही बैठ गया - तुब बाबा बोले "अच्छा गता " " आवाज़ अच्छा हैं " " गौतम जसराज" तब गौतम बोला की पंडित जसराज जी मेरे गुरु हैं, मेरा नाम गौतम काले हैं तुब बाबा पुनः बोले नहीं " यू अरे गौरम जसराज " फिर बोले " तुमने ॐ सुनाया मैं तुमको ॐ देता " उसी समय उन्होंने अपना हाथ हवा में घुमाया और कुछ ही क्षणों में उनके हाथ में एक सोने की चमचमाती अंगूठी थी, गौतम ने उसे प्राप्त करने के लिए एक याचक की बहती दोनों हाथ आगे किये तब फिर बाबा बोले नहीं तुम्हारी रिंग फ़िनगेर दो तब बाबा ने वह अंगूठी गौतम को पहनाई -
गौतम के जीवन का यह अविस्मरनीय क्षण था - बाबा के आशीर्वाद प्राप्त कर वह वापस अपने नियत स्थान पहुंचा –


प्रशांति निलियम में उपस्थित बाबा के भक्तो ने गौतम की इस उपलब्धि को असाधारण मन कर उससे मिलने और उस दिव्या अंगूठी के दर्शन कर स्वय को भाग्यशाली समझा - एक बार हुझुम उसके पीछे हो लिया - उस परिस्थिति में वहा तैनात रक्षक दल ने गौतम को अपने साथ लेकर उसके विवास तक पहुचाया तभी गौतम को सुचना दी गई की अमुक दिनक को बाबा द्वारा स्थापित संगीत विद्यालय में शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति वहा के विद्यार्थियों के समक्ष देना हैं - जैसा की गौतम ने बाबा से (मन ही मन ) कहा था की उनके समक्ष प्रस्तुति पश्चात् अगली प्रस्तुति अपनी मुचे साफ कराकर दूंगा - अतेव संगीत विद्यालय में प्रस्तुति देने के पूर्व उसने अपनी मुछे साफ करा कर वहा प्रस्तुति दी और अपना बात पूरी की - बाबा के यहाँ सात दिन रहने का सौभाग्य मिला और वहा कई चमत्कार एवं सुखद घटनाए घटित हुई जिसका पूर्ण विवरण लिखना संभव नहीं हैं - इंदौर में पुनः अपना कार्य और अपनी संगीत साधना में व्यस्त हो गया –


वर्ष २००८ - २००९ में गौतम ने भोपाल, राजस्थान में कई स्थानों पर तथा पंजाब में फगवारा में अपनी प्रस्तुतिय देकर श्रोताओ को मंत्रमुग्ध किया - वहा सव्ही ने उसकी गायकी पर पंडित जसराज जी की छबि होने की मुक्त कंठ से सराहना की - आगरा में उसके गायन पश्चात् गौतम को " नाद साधक " के पदवी से विभूषित किया गया -


वर्ष २००८ में गौतम से श्री नीरज गोयल का इश्वर सवरूप संपर्क हुआ, वे उसे पचपन से जानते हैं व वे गौतम से पहले से ही प्रभावित थे - उन्होंने उसे एक उच्च स्तरीय संगीत स्कूल आरम्भ करने का अवसर दिया - दिसम्बर २००८ में सा रे ग म म्यूजिक स्कूल ५/५ नवरतन बाग , विशेष हॉस्पिटल के पीछे की स्थापना की - संगीत प्रेमी इच्छुक छात्रों ने उसमे आकर संगीत की शिक्षा लेना आरंभ किया - सतत मेहनत से विद्यार्थिओं को वहा शिक्षा दी जा रही हैं - आज के परिपेक्ष में जो आज के संगीत की मांग हैं उसके तकनिकी पहलु भी शिक्षण के साथ समाहित किये गाये हैं - श्रीमती कल्पना झोकरकर श्री गौतम काले को सतत संगीत का प्रशिक्षण देती रहती हैं और शिर गौतम को उनका आशीर्वाद सदा प्राप्त होता रहता हैं - यह कहानी हैं एक और एकलव्य की -


डा के वी काले पशु चिकत्सक रुस्तमजी सशस्त्र पुलिस महाविद्यालय इंदौर का मुझे इस लेखन में विशेष सहयोग प्राप्त हुआ -

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